समंदर ...... मैं कब तक तुझे दूर से देखती रहूंगी
तू तो जब चाहे मेरी आँखों से होकर गुज़र जाता है
कभी तो अपने करीब बुला ....... वहीँ ठहर
अपने पांवो के निशां देखने दे
लहरें क्या गाती है सुनने दे
चट्टानों की ओट में जा जा के क्या बतियाती हैं
शाम को सर गोद में रख कर तपस्वी सूर्य का.....कैसे थपथपाती है ,
समंदर ...... मैं कब तक तुझे दूर से देखती रहूंगी
तू जब चाहे निकल पड़ता है नयी दिशाओ में। ....... ज़रा रुक
मुझको भी साथ ले चल
भर लूं हाथों में लहरों का शोर
समेट लूं तेरी गहरायी अपने मन में
बसा लूं तेरा विस्तार अपने सपनों में।
समंदर ...... मैं कब तक तुझे दूर से देखती रहूंगी
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