Wednesday, December 5, 2012

Mera Wajood

Mere hone par sawal ,
Mere wajood par shaq ,
meri muskurahat par shubaha,
kaleje par pathhar to suna thha ........magar pathharon ka dhair ?

Mere apno thoda thehro , zara kareeb se dekho ,

mere hone ko zid ,
mere wajood ki mehak ,
mere muskurahat ki aanch ...........

Pathharon ke dhair ko bana diya hai hawan kundd,

chahiye mujhe aahuti ki saamgri ..............

mere apno ...do mujhe aur sawal ......aur shaq .....aur shubaha |

7 september 2003 aye khuda !

Aye  khuda ..... mujhe to tujhse maanga thha duao mein ,
aye khuda tune hi kabool ki thhi dua ...bheja tha is jahaan mein ,

yaad hai ? sanwaara thha , gadhha thha mujhe ...umangon se , khawabo se ...?

fir ab ?

mere hi hissey ki khusiya sirhaane rakh tujhe kaise neend aa gayi ?

aye samander

22.12.04

ए समंदर तू किस गुरुर में शोर मचाता है ?
तुझसे कई मेरी पलकों की देहलीज पर खामोश बहते हैं !

एक और किस्मत की करामात देख ......मेरे समंदर के साहिल रेगिस्तान हैं !

kaise usse guzra keh doon ?

12.01.05

kaise usse guzra keh doon ..jo mere hathon mein ki lakeero mein tham gaya,

kaise usse mazi keh doon ....jo meri prerna ban gaya ,

kaise usse beeta keh doon .... jo mujhe mera aaj de gaya ,

kaise usse alwida keh doon ..jaate jaate wo mere hoslo ko bulandi de gaya ,

kaise usse guzra waqt keh doon ..jo mujhe aate huey lamho ki negehbani de gaya ,

kaise usse usse peechle saal keh doon ...jo mere sapno ko sach ka ujala de gaya,

kaise usse ateet keh doon ....jo mere bhavishya ko prateek de gaya ,

kayi yaado ke dhaage kitne hi anubhavo ki narmi , haqekat ke dhos dharatal par ..khawobo ka aasma ...........aur dhair saare vaado ke saath ................jaate jaate mujhe meri pehchaan de gaya |

kaise usse guzra keh doon ..jo mere hathon mein ki lakeero mein tham gaya,

kaise usse mazi keh doon ....jo meri prerna ban gaya ,

कैसे उसे बीता कह दूं .... जो मुझे मेरा आज दे गया ,

कैसे उसे अलविदा कह दूं ..जाते जाते वो मेरे होसलो को बुलंदी दे गया ,

कैसे उसे गुज़रा वक़्त कह दूं ..जो मुझे आते ही लम्हों की नेगेह्बानी दे गया ,

कैसे उसे पिछला साल कह दूं ...जो मेरे सपनो को सच का उजाला दे गया ,

कैसे उसे अतीत कह दूं ....जो मेरे भविष्य को प्रतीक दे गया ,

कई यादो के धागे कितने ही अनुभवों की नरमी , हकीकत के ढोस धरातल पर ..खावोबो का आसमा ...........और धीर सारे वादों के साथ ................जाते जाते मुझे मेरी पहचान दे गया |

रिश्ते सिर्फ ज़ज्बाती नहीं हो सकते क्या अब ?

विश्वास की नीव   इतनी कमज़ोर क्यों होने लगी है ? रिश्ते सिर्फ ज़ज्बाती नहीं हो सकते क्या अब ? हर रिश्ते के पीछे कोई न कोई रीज़न होना ज़रूरी है ? रिश्तों की बुनियाद  ये तो नहीं ! अपनों की परिभाषा ये तो नहीं हो सकती ! 

कैसे बचपन के रिश्ते होते हैं ...पाक सहज सरल ...जब जो जी चाहा कह दिया , कर लिया . किसी भी लफ्ज़ को कहने  से पहले तौलते  नहीं सोचते नहीं ......नए दोस्त बनाने से पहले उसके बारे में जाना नहीं चाहते की वो क्या करता है , उसका समाज में क्या स्थान है ? क्या वो उनके किसी काम आएगा ? क्या उससे दोस्ती करके उन्हें कोई फ़ायदा होगा ...... दोस्त सिर्फ दोस्त होता है ...अपना सिर्फ अपना ....जिससे आप खुद को बाँट सको । 

आज के दौर की समस्या ये हो गयी है की अगर आप ने सिर्फ रिश्ता ज़ज्बाती तौर पर बनाया है , आप की भावनाए बेशक एक दोस्त की रहे लेकिन ज़रूरी नहीं आप जिसे दोस्त मान रहे हैं वो आपको उस परिभाषा वाला दोस्त या अपना मान रहा है या नहीं . सामने अपनापन पा  कर आप इस मुगालते में रहते हैं की आपको एक अच्छा दोस्त मिला लेकिन आपके पलटते ही शायद उनका रिश्ता तब तक रहेगा जब तक आप उनके लिए एक बेटर डील साबित होते हैं या नहीं . बस ऐसे में दोस्ती के रिश्ते से विश्वास न उठने दें , आप जो हैं आपके जो ज़ज्बात हैं , र्रिश्ते की अहमियत जो आपके लिए है उससे टूटने न दें .....अक्सर ऐसी स्थिति या अनुभव हमारे विश्वास को झकझोरते हैं ....और हम हर नए मिलने वाले शख्स के प्रति अपनी स्वाभाविक भावनाओ को प्रदर्शित करने से डरते हैं . उनकी नजरो में हमें वही नाप तौल नज़र आने लगता है । वैसे महानगरो में लोग इस मुताल्क काफी साफगोई पसंद हो गए हैं उन्हें अगर आपसे काम नहीं तो वो उसे साफ़ ज़ाहिर कर देंगे और अपनी दूरी बनाये रखेंगे ,,,,लेकिन अगर आपसे काम हुआ तो लिल्लाह !!! आपसे ज्यादा उनका करीबी कोई नहीं बस आप अपना ख्याल रखें सेंटी न हो जायें वरना बाद में दोस्ती के रिश्ते पर प्रशचिन्ह्न उठाते रह जाएंगे ।

Tuesday, December 4, 2012

हकीकत

हम जानते हैं हकीकत क्या है लेकिन उसे मानने से इनकार कर देते है .....सामने जो दिखाई देता है वो सच नहीं होता पर न जाने क्यों दिल मान जाता है की जो सामने है वही सच है शायद इसलिए की हमारी अपनी सच्चाई वही एक होती है । कभी कभी लगता है गलती उनकी भी नहीं आज के दौर का चलन ही ऐसा है । ज़िन्दगी में आज के वक़्त में संघर्ष इतना हो गया है , ख्वाहिशे इतनी बढ़ गयी हैं की जब तक आप किसी और की किस्मत और खुद के ज़मीर पर पांव रख कर आगे नहीं बढ़ते आपको खुद को जमीन नहीं मिलती कदम रखने के लिए ऐसे में इंसान क्या करे ??? पर इसके आगे क्या ?? आज को तो आपने सुरक्षित कर लिया आगे क्या ???? बहुत से पाँव आपकी भी किस्मत को ठोकर मारने को तत्पर खड़े है .... 

Sawaal

ज़िन्दगी सवाल बहुत पूछती है ....या फिर मैं ही खुद से सवाल करती हूँ ? वक़्त के साथ सब कुछ कितना बदल गया है मगर न जाने क्यों हमारी यादों में सब कुछ वैसा ही रहता है अक्सर  यादोँ  के गलियारों से गुज़रती हूँ उन लम्हों को छूती हूँ मुझे सब कुछ पहले जैसा ही लगता है ...या फिर मैं उससे वैसे ही देखना चाहती हूँ शायद उसी में सुकून पाती हूँ . किसी ने मुझसे कहा था मेरी राशी वाले लोग बदलाव से डरते हैं .....तभी किस्मत उन्हें इतने बदलाव देती है जिनसे उसे होकर गुज़ारना ही होता है .कमबख्त डर भी क्या चीज़ है न जाने कितने रूप धरता है ये ।जनम भी इसे हम ही देते हैं रूप भी ....कारण  भी हमी होते हैं और निवारण भी ।