बस बंद करो खुद को कटघरे में खड़ा करना ....बस भी करो अब !!!!
न इल्ज़ामात तुम्हारे न जिरह तुम्हारी ...
तुम बस मूक सी खड़ी ,
ना मुलजिम न मुजरिम तुम पर
मिलती तुम्हें तारिख बड़ी |
वो क़त्ल कर आशियानों में जा बसे ,
जंहा पहुंचते नहीं कानून के हाथ जो होते बड़े |
तुम जी रहीं अपराधी सा जीवन ,
जिनके रंगे हाथ खून से उनका हर क्षण आकर्षण |
तुम चाहती पूछती गुहार लगाती आर्तनाद करती ,
न्याय कहाँ ? इंसानियत कहाँ ?ज़मीर कहाँ ?
दुनिया कहती धीरज धरो ..वक़्त का इंतज़ार करो .....होता है ...
लहू जो रिश्ता हर पल ह्रदय में ...दीखता नहीं चेहरे पर
मगर सावधान ! दिखाना नहीं एक भी आंसू ...
वरना फिर इलज़ाम लगेंगे ...............
इसलिए अब बस भी करो |
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