Sunday, November 13, 2016


बस बंद करो खुद को कटघरे में खड़ा करना ....बस भी करो अब !!!! 

न इल्ज़ामात तुम्हारे न जिरह तुम्हारी ...
तुम बस मूक सी खड़ी ,

ना  मुलजिम न मुजरिम तुम पर 
मिलती तुम्हें तारिख बड़ी |

वो क़त्ल कर आशियानों में जा बसे ,
                जंहा पहुंचते नहीं कानून के हाथ जो होते बड़े |


तुम जी रहीं  अपराधी सा जीवन ,
                जिनके रंगे हाथ खून से उनका हर क्षण आकर्षण |


तुम चाहती पूछती गुहार लगाती आर्तनाद करती ,
              न्याय कहाँ ? इंसानियत कहाँ ?ज़मीर कहाँ ?     

दुनिया कहती धीरज धरो ..वक़्त का इंतज़ार करो .....होता है ...

लहू जो रिश्ता हर पल ह्रदय में ...दीखता नहीं चेहरे पर 

मगर सावधान ! दिखाना नहीं एक भी आंसू ...

वरना फिर इलज़ाम लगेंगे ...............

इसलिए अब बस भी करो |   



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