Sunday, April 7, 2013

सपने कहाँ मिलते हैं ?




गोद भराई फूटपाथ पर , नामकरण भी फूटपाथ पर , कांच की बोतल के ढ़क्कनको गेंद और पेड़ की सुखी टहनी को बैट बनाकर ,प्लास्टिक की थैलीको गुब्बाराऔर कागज़ की थैली को पतंग बनाकर,
टूटता..बिखरता ..बढ़ता है बचपन , न चाह कर ...दनदनाती रेल की खडखड़ाती पटरियों की लोरी सुनकर बढ़ता है बचपन ,
क्या सपने देखता होगा ये बचपन ?
हकीकत सी कठोर ज़मी पर सोते इस बचपन से पूछ बैठी येही सवाल .......
उनींदी आँखों से पथरीली ज़मी पर नज़रें गड़ा कर पूछ बैठा मुझसे ही ....
ये सपने दीखते कैसे हैं ? कंहा मिलते हैं ? हम खरीद नहीं सकते न !!
जवाब में सारे सवाल मुझे थमा कर वो चल दिया ......
उसका यथार्थ मेरी आँखों में पथरा गया ................ये सपने कंहा मिलते है ? ?