Tuesday, September 27, 2011

क्या करूँ ?

न करूँ ज़िक्र ज़िन्दगी की हकीक़तो का तो क्या करूँ ?


शब्द ही तो हैं मेरे साहिल उन तक भी न पहंचु तो क्या करूँ ?


वक़्त से होती हूँ रूबरू रोज़, होंसलों के साथ क्या करूँ ?


मिलता है रोज़ वही नए इम्तिहानो के साथ क्या करूँ ?


लेती हूँ आड़े हाथो खुदा को भी क्या करूँ ?


हाथों की लकीरों को भी देती हूँ चुनौती रोज़ क्या करूँ ?


करने दो मुझको ज़िक्र हर एहसास का , करनी है ढेरो बातें , क्या करूँ ?


देती हूँ मुस्कुरा मैं हर बात पर ............................मैं क्या करूँ ?? --

Monday, September 19, 2011

मैंने इक गीत लिखा है

मैंने इक गीत लिखा है किसको सुनाऊं ?


शब्दों में पिरोये हैं दिल के हालात ..कैसे दिखाऊँ ?


सुबह को निकली इक किरण जल्दी में थी , न जाने उसे कहाँ जाना था !


दोपहर को अपने साए से कहने लगी , वो बड़ा गुमसुम सा था , मैं भी खामोश रह गयी !


आसमान का रंग बदलने लगा था उसकी ओर देखा , वो शाम के इंतज़ार में था , मेरी आँखों में भी इंतज़ार उतर आया !


बस अब रात का खवाब बचा था , वो दबे पाँव आया ..बहुत नाज़ुक था ..कैसे कहती , उसके साथ फिर सुबह का इंतज़ार करने लगी


मैंने इक गीत लिखा है किसको सुनाऊं ?


शब्दों में पिरोये हैं दिल के हालात ..कैसे दिखाऊँ ?